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Special Education Notes
Friday, April 14, 2023
Friday, April 7, 2023
Saturday, April 1, 2023
विश्व ऑटिज्म(स्वपरायण) जागरूकता दिवस // ऑटिज्म की परिभाषा //दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 // अमेरिकन दिव्यांगता अधिनियम (1990) //ऑटिज्म के सामान्य लक्षण
ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनायेंगे|
ऑटिज्म को सक्षम व साक्षर बनायेंगे||
विश्व ऑटिज्म(स्वपरायण) जागरूकता
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 18 दिसम्बर 2007 को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2 अप्रेल को मनाने की घोषणा की थी |
2 अप्रेल को विश्व भर में विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस जाता है जिसका उद्देश्य ऑटिज्म (स्वलीनता ) से प्रभावित बच्चों तथा बड़ों के जीवन में सुधार के कदम उठाये जा सकते है |
नीला रंग ऑटिज्म का प्रतीक माना जाता है यह बीमारी या स्थिति महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों में अधिक पायी जाती है |
भारत सरकार ने ऑटिज्म ,प्रमस्तिक घात ,मानसिक मंदता और बहु-दिव्यांगता व्यक्तियों के कल्याण के लिए राष्ट्रीय न्यास अधिनियम-1999 बनाया था |
जिस पर महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा 30 दिसम्बर 1999 को हस्ताक्षर किये गए |
राष्ट्रीय न्यास अधिनियम के
अनुसार ऑटिज्म की परिभाषा :-
“स्वपरायणता
“(ऑटिज्म )का अर्थ है असमान निपुणता की स्थिति जो मनुष्य की संचार –व्यवहार और
सामाजिक योग्यताओं को प्रभावित करती है | और बारंबारता मूलक और विधिवादी व्यवहार
से चिन्हित होती है |
दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 के अनुसार ऑटिज्म की परिभाषा:-
“स्वपरायणता स्पेक्ट्रम विकार से एक ऐसी तंत्रिका विकास की स्थिति अभिप्रेत है जो विशिष्टत: जीवन के पहले तीन वर्ष में उत्पन्न होती है जो व्यक्ति की संपर्क करने की ,सम्बन्धों को समझने की और दूसरों से संबंधित होने की क्षमता को अत्यधिक प्रभावित करती है |
और आम तौर पर यह
अप्रायिक या घिसे पिटे कर्मकांडों या व्यवहार से सह सम्बन्ध होता है “
अमेरिकन दिव्यांगता अधिनियम
(1990) के अनुसार :-
ऑटिज्म एक
विकासात्मक दिव्यांगता है जो मुख्य रूप से शाब्दिक –अशाब्दिक सम्प्रेषण एवं
सामाजिक अंत:क्रिया को प्रभावित करता है | सामान्य रूप से यह घटना 3 वर्ष की उम्र के पूर्व शुरू हो जाती है | जो
बालक के शैक्षिक निष्पादन को प्रभावित करती है |
ऑटिज्म के सामान्य लक्षण :-
·
हम उम्र के बालकों के साथ नहीं खेलता |
·
आवाज देने पर प्रतिक्रिया नहीं देता |
·
अपना ध्यान अधिक व्यस्त रखता है |
·
वस्तुओं को शरीर के किसी अंग या त्वचा से रगड़ता है |
·
नजरें नहीं मिलाता |
·
किसी क्रिया में कम समय तक ध्यान देता है |
·
सुनी हुई बात को दोहराता रहता है |
·
कंठ से विचित्र आवाज करता है |
·
प्रकाश के प्रति संवेदनशील होता है |
·
सामाजिक कौशलों में कमी पाई जाती है |
·
प्राथमिक देख भाल करने वाले व्यक्ति से जुड़े रहते है |
·
व्यवहार बहुत बुरा (नखरे वाला ) हो जाता है |
·
क्रियाओं को बार –बार दोहराना |
·
पुनरावृति पेशीय क्रियाएँ
·
संवेदी अनुभूतियाँ ( वस्तुओं को सूंघना ,ध्वनी को पसंद करना )
·
गंभीर भावनात्मक कमी का पाया जाना|
·
भाषा संबधी कमी
·
संवेगात्मक अस्थिरता
ऑटिज्म के कारण:-
अभी तक ऑटिज्म
का कोई स्पष्ट एवं सुनिश्चित कारण
का पता नहीं चला है |
·
अनुवांशिकता
·
मस्तिष्कीय संरचना में विकृति /मस्तिष्क के रसायनों में असामान्यता
·
विषाणुओं का संक्रमण
·
जन्म से पहले बच्चे का पूर्ण विकास नहीं हो पाना
ऑटिज्म बालकों की मदद के तरीके :-
ऐसे
बालकों एवं व्यक्ति के उपचार एवं प्रबंधन में एक साथ कई विधियों पर एक साथ कार्य
किया जाता है |
·
समस्यात्मक व्यवहारों को दूर करने का प्रयास करना |
·
शैक्षणिक हस्तक्षेप – भाषा व सम्प्रेषण विकास पर जोर देना |
·
विशेष शिक्षक की सेवा लेना |
·
अवांछनीय व्यवहारों को दूर करने का प्रयास करना |
·
अभिभावक को उचित परामर्श देना |
·
सामाजिक कौशल प्रशिक्षण देना |
·
मनो चिकत्सक की सलाह लेना |
नोट –
विभिन्न शोध व लेख पत्रों में अनेक व्यवहार बताये
गए है | जब बहुत सारे व्यवहार एक साथ पाए जाने पर ही ऑटिज्म होने की शंका पैदा
होती है |
नीला रंग अपनाओ, ऑटिज्म दिवस मनाओ
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Friday, March 31, 2023
Monday, March 27, 2023
Sunday, March 26, 2023
Friday, March 24, 2023
PARKISON DISEASE (पार्किसन रोग ) क्या है ?
पार्किसन रोग (PARKISON DISEASE ) -
पार्किसन रोग एक ऐसी बीमारी है जिसमें मस्तिष्क का हिस्सा कई वर्षों के दौरान क्षतिग्रस्त होता है
पार्किसन रोग के तीन लक्षणों का सम्बन्ध शारीरिक गतिविधियों से है –
1-शरीर का कोई हिस्सा अनैच्छिक रूप से हिलना – जिसे कंपकपी कहते है
2-मांसपेशियों में कड़ापन जिससे दैनिक कार्य करने में परेशानी होती है – इसे अकडन कहते है |
3-शारीरिक गतिविधियां धीमी हो जाती है –इसे ब्रैडीकानेशिया कहते है |
यह एक ऐसी बीमारी है जो व्यस्क लोगों में देखि जाती है |इस बीमारी का इलाज नहीं है लेकिन दवाओं से नियंत्रण किया जा सकता है
10-15 प्रतिशत लोगों को आनुवांशिक कारणों से यह रोग होता है |
परिभाषा ( DEFINITION) -
दिव्यांगजन अधिकर अधिनियम 2016 के अनुसार-
“पार्किसन रोग “ से कोई तंत्रिका प्रणाली का प्रगामी रोग अभिप्रेत
है , जो कम्पन,पेशी कठोरता और धीमा ,कठिन
संचलन द्वारा चिन्हाकित होता है जो मुख्यतया मस्तिष्क के आधारीय गंडिका के अद्यपतन
तथा तंत्रिका संचलन डोपामइ के ह्रास से संबंद्ध
मध्य आयु और वृद्ध व्यक्तियों को प्रभावित करता है |
लक्षण ( SYMPTOMS) -
1.आराम की
स्थिति में हाथों में होने वाली कम्पन |
2.आसान कार्य
करने में कठिनाई होती है या अधिक समय लगता
है |
3.चलने की गति
धीमी हो सकती है |
4.पैरों को
घसीट कर चलने की कोशिश करता है |जिससे चलना मुश्किल होता है |
5.शरीर के किसी
हिस्से में मांसपेशीयों में अकडन हो सकती है |
6.शरीर झुक सकता है या असंतुलन की समस्या आ सकती है |
PARKISON DISEASE SYMPTOMS |
7.अचेतन कार्य करने की क्षमता में कमी आ सकती है | जैसे –
मुस्कराना ,पलकें झपकाना आदि
8.आवाज में परिवर्तन – जैसे –स्वर धीमा ,तीव्र और अस्पष्ट हो
सकता है |
9.लिखावट में परिवर्तन हो सकता है –लिखावट छोटी हो सकती है या लिखने में समस्या हो सकती है |
Thursday, March 23, 2023
बहु –स्केलेरोसिस - Multiple Sclerosis
बहु –स्केलेरोसिस - ( Multiple Sclerosis ) क्या है ?
यह एक रोग जिसमें मस्तिष्क तथा सुषुम्ना रज्जू शोथ के चारों ओर वसायुक्त माइलिन के आवरण क्षतिग्रस्त हो जाता है | जिससे माइलिन के आवरण नष्ट होने और घाव के निशान होने के साथ - साथ रोग के संकेत और लक्षणों के स्थूल क्रम उत्पन्न होते है | बीमारी की शुरुआत आम तौर पर युवा वयस्कों में पायी जाती है और यह महिलाओं में ज्यादा होती है एमएस मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका कोशिकाओं के एक दुसरे से संवाद करने की क्षमता को प्रभावित करता है | तंत्रिका कोशिकाएं लम्बें तन्तुओं के नीचे कार्य क्षमता नामक विद्युत संकेत भेज कर संवाद स्थापित करते है जिन्हें तंत्रिकाकक्ष कहा जाता है ये माइलिन नामक एक रोधक पदार्थ में लिपटे हुए रहते है एमएस में शरीर का अपना प्रतिरोधी तन्त्र माइलिन पर हमला करता है और उसे नुकसान पहुंचाता है जब माइलिन नष्ट हो जाता है तो तंत्रिकाक्ष प्रभावकारी ढंग से संकेतों को संचालित नहीं कर सकता है फ्रांसीसी तंत्रिका विज्ञानी जीन-मार्टिन चार्कोर्ट ने १८६८ में मल्टीपल स्केलेरोसिस की एक विशेष बीमारी के रूप में पहचान की थी
परिभाषा (Definition ) - दिव्यांजन अधिकर अधिनियम
२०१६ के अनुसार –“ बहु – स्केलेरोसिस” से प्रवाहक ,तंत्रिका प्रणाली रोग अभिप्रेत
है जिसमें मस्तिष्क की तंत्रिका कोशिकाओं के अक्ष तन्तुओं के चारों ओर रीढ़ की
हड्डी की मायलिन सीथ क्षतिग्रस्त हो जाती है जिससे डीमायीलिनेशन होता है और
मस्तिष्क में तंत्रिका कोशिकाओं और रीढ़ की हड्डी की कोशिकाओं की एक- दूसरे के साथ सम्पर्क करने की क्षमता प्रभावित होती है |
लक्षण ( Symptoms) - एमएस एक Auto Immune
system का विकार है जो Central nervous system को प्रभावित करता है यह एक ऐसी
बीमारी है जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली नसों के सुरक्षात्मक कवच को खा जाती है जिससे
नस की क्षति होती है जो मस्तिष्क और शारीर के बीच संचार को बाधित करती है |
· 1. देखने में असुविधा
· 2. संतुलन में कमी
· 3. अस्थिरता
· 4. बोलने में असुविधा
· 5. ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई
· 6. शारीरिक अंगो में कमजोरी
Wednesday, March 22, 2023
BLOOD RELATED DIDEASES & DISABILITY (रक्त विकृती के कारण होने वाली दिव्यांगता )
हीमोफिलिया (Hemophilia) -
हीमोफिलिया आनुवांशिक रोग है इसे ब्रिटिश रॉयल डिजीज(शाही
रोग) के नाम से भी जाना जाता है जिसमें
शरीर के बाहर बहने वाला रक्त जमता नहीं है | या रक्त का बहना जल्दी से बंद नहीं
होता | इस रोग में रोगी के शारीर के किसी
भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून निकलना आरंभ हो जाता है |
अगर समय पर उपचार नहीं मिला तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है | इस के प्रति
जागरूकता फ़ैलाने के लिए १९८९ में विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाने की शुरुआत की गई ,
प्रत्येक वर्ष वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हेमोफीलिया (WFH) के संस्थापक फैंक कैनेबल के जन्मदिन १७ अप्रेल के
दिन विश्व हेमोफीलिया दिवस मनाया जाता है |
परिभाषा (Definition) दिव्यांगजन अधिकर अधिनियम २०१६ के अनुसार –
“हीमोफिलिया” से एक आनुवंशकीय रोग
अभिप्रेत है जो प्राय : पुरूषों को ही प्रभावित करता है किन्तु
इसे महिला द्वारा अपने नर बालकों को संचारित किया जाता है , इसकी विशेषता
रक्त के थक्का ज़मने की साधारण क्षमता का नुकसान होना है जिससे छोटे से घाव का परिणाम भी घातक रक्तस्राव
हो सकता है ;
कारण ( Cause ) -
यह बीमारी रक्त में
थ्राम्बोप्लास्टिन ( THROMBOPLASTIN) नामक
पदार्थ की कमी से होता है थ्राम्बोप्लास्टिन में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है | अर्थात एक रक्त
प्रोटीन की कमी होती है जिसे क्लाटिंग फैक्टर कहा जाता है | हीमोफीलिया रोग महिला
की अपेक्षा पुरुषों में अधिक पाया जाता है , इस रोग की वाहक महिला होती है , हीमोफीलिया दो प्रकार का होता है फैक्टर 8 की कमी हो तो हीमोफीलिया ‘ ए’ तथा
फैक्टर 9 की कमी को हीमोफीलिया ‘ बी ‘ कहा जाता है |
लक्षण ( Symptoms ) -
1-
शरीर में नीले –नीले निशान का बनना
2- नाक से खून
3- आंख के अन्दर खून का निकलना
,
4- जोड़ों में सूजन आना (विशेषकर
घुटनों ,एड़ी ,कोहनी आदि बार बार सुजन
5- चोट लगने पर रक्तश्राव जल्दी नहीं रूकना
6 – मसूड़ों से देर तक रक्तस्राव
का होना आदि
उपचार ( Treatment ) - सबसे पहले ब्लड टेस्ट
से हीमोफीलिया की जाँच करानी चाहिए
इसके पश्चात् निम्न तरीकों से इसका इलाज
किया जाता है |
1- थेरेपी:-
हीमोफीलिया का इलाज उसकी गंभीरता
पर निर्भर करता है | रिप्लेसमेंट थेरेपी के माध्यम से उपचार किया जाता है जिसमें
अधिक गंभीर स्थिति में हीमोफीलिया से जुड़े क्लोटिंग फैक्टर को बदला जाता है |
क्लोटिंग फैक्टर को नसों में नली डाल कर बदला जाता है |
2- डीडीएवीपी :- यह एक टीका है जिसे हल्के
हीमोफीलिया के लक्षण वाले मरीज को लगाया जाता है
जो शरीर में ज्यादा क्लोटिंग फैक्टर बनाने का काम करता है टीका नसों के भीतर लगाया जाता है या नाक में स्प्रे की मदद से लगाया जाता है |
3- एंटी फिब्रिनोलिटिक्स –
इस दवा की मदद से ब्लड क्लोट्स को
टूटने से रोका जाता है |
4- फैब्रिन सीलेंट-
इस दवा को सीधे चोट पर लगाई जाती
है ,जिससे घाव जल्दी भर जाए |
5- टीकाकरण
हीमोफीलिया रोग पीड़ित व्यक्ति को
हेपेटाइटिस ‘ए’ और हेपेटाइटिस ‘बी ‘ के खिलाफ टीका जरुर लगवाना चाहिए |
थेलेसीमिया (Thalassemia) - यह माता –पिता से अनुवांशिक तौर पर
मिलने वाला रक्त जनित रोग है| इस रोग से ग्रसित बालकों के शरीर में हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में
खराबी हो जाती है |जिसके कारण रक्त क्षीणता के लक्षण प्रकट होने लगते है | इसमें
रोगी बालक के शरीर में रक्त की भारी कमी
होने लगती है | जिस के कारण हिमोग्लोविन नहीं बन पाता है जिसके कारण बार बार रक्त चढाना पड़ता है | इस रोग में लाल रक्त कण (RBC)नहीं
बन पाते है और जो थोड़े बनते है वो अल्प काल तक रहते है |
परिभाषा ( Definition) -
दिव्यांगजन अधिकर अधिनियम २०१६ के
अनुसार –‘थेलेसीमिया’ से वंशानुगत विकृतीयों का एक समूह अभिप्रेत हैं जिसकी
विशेषता हिमोग्लोबिन की कमी या अभाव है ;
थेलेसीमिया के प्रकार (Type of Thalassemia) - ऐसे तो थेलेसीमिया के कई प्रकार
होते है पर मुख्यत: दो प्रकार है |
थेलेसीमिया माइन र :-
यह बीमारी उन बच्चों को होती है ,
जिन्हें प्रभाबित जीन्स माता अथवा पिता द्वारा प्राप्त होता है इस प्रकार से पीड़ित
थेलेसीमिया के रोगियों में अक्सर कोई लक्षण नजर नहीं आता हैं | यह रोगी थेलेसीमिया
वाहक होते है |
थेलेसीमिया
मेजर :-
यह बीमारी उन बालकों
को होती है जिनके माता –पिता दोनों के
जिन्स में कमी / गड़बड़ी होती है | यदि माता –पिता दोनों थेलेसीमिया माइनर हो तो
होने वाले बच्चें को थेलेसीमिया मेजर होने का खतरा अधिक रहता है |
हैड्रोप
फीटस :-
यह एक बेहद खतरनाक
थेलेसीमिया का प्रकार है जिसमें गर्भ के अंदर ही बालक की मृत्यु हो जाती है या
पैदा होने के कुछ समय बाद ही बच्चा मर जाता है |
लक्षण ( Symptoms ) -
थेलेसीमिया माइन र के अधिकतर मामलों में
कोई लक्षण नजर नहीं आता है | कुछ रोगियों को खून की कमी या एनीमिया हो सकता हैं | मेजर
थेलेसीमिया के लक्षण 3 माह बाद नजर आने लगते है | इस रोग में बालकों की जीभ पीली
पड़ जाती है जिससे पीलिया का भ्रम हो जाता है बच्चों का विकास रुक जाता है त्तथा
उम्र छोटी नजर आती है| सूखता चेहरा ,वजन न बढ़ना ,हमेशा बीमार नजर आना ,साँस लेने
में समस्या तथा बच्चों के जबड़ो व् गालों में असामान्यता आ जाती है |
उपचार/उपाय ( Treatment ) -
रक्त चढ़ना
थेलेसीमियाका उपचार
करने के लिए नियमित रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है| कुछ रोगियों को 10 से 15 दिन में रक्त चढ़ाना पड़ता है उम्र के साथ साथ
रक्त की आवश्यकता भी बड़े लगती है | अत: रक्त दान करना चाहिए जिससे इन रोगियों को
इलाज में सहायता मिल सके |
बोन
मेरो ट्रांसप्लांट:-
बोन मेरो ट्रांसप्लांट और स्टेम सैल का उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोकने
पर पर शोध हो रहा है|
खेलासोन
थेरेपी :-
बार बार रक्त चढ़ाने से
और लौह तत्व की गोली लेने से रोगी के रक्त में लौह तत्व की मात्रा अधिक हो जाती है लीवर ,स्पीलिन , तथा ह्रदय में
जरूरत से अधिक लौह तत्व जमा होने से ये अंग सामान्य कार्य करना बंद कर देते है
|रक्त में जमे इस अधिक पदार्थ को निकालने के लिए इंजेक्शन और दवा दोनों तरह के
इलाज उपलब्ध है |
जागरूकता
:-
आज समाज में
थेलेसीमिया को लेकर अज्ञानता हैं हमें थेलेसीमिया से पीड़ित लोगों में इस रोग
संबंधी जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि इस रोग के वाहक इस रोग को और अधिक ण फैला सके |
गर्भावस्था
:-
अगर माता –पिता थेलेसीमियासे ग्रसित है तो गर्भावस्था के समय
प्रथम ३से४ माह के भीतर परिक्षण द्वारा
होने वाले बच्चे को थेलेसीमिया तो नहीं है इसका परिक्षण करना चाहिए |
शादी:-
थेलेसीमिया से बचने
के लिए शादी से पहले लड़के और लड़की की स्वास्थ्य कुंडली मिलानी चाहिए |जिससे पता
चले सके की उनका स्वास्थ एक दुसरे के अनुकूल है या नहीं | स्वास्थ्य कुंडली में थेलेसीमिया , एड्स ,हेपेटा इटिस बी
और सी ,आरएच फैक्टर इत्यादि की जाँच कराना चहिए|
सिक्क्ल
सैल ( Sickle cell )
-
सिकल सेल कई बीमारियों का एक समूह है जो खून में मौजूद हिमोग्लोबिन को
प्रभावित करता है | हिमोग्लोबिन शरीर की सभी कोशिकओं तक आक्सीजन पहुँचाने का काम
करता है | यह एक वंशानुगत बीमारी है जो बच्चों को अपने माता –पिता से मिलती है |
इसमें हिमोग्लोविन के असामान्य अणु जिन्हें हिमोग्लोबिन एस कहते हैं वे लाल रक्त
कोशिकाओं का रूप बिगड़ देते है | जिससे वह सिकल या हंसिया (अर्धचन्द्राकार )
आकृती का हो जाता है | लाल रक्त कोशिकाएं
जो स्वस्थ होती हैं उनका शेफ गोलाकार होता है जो छोटी छोटी रक्त धमनियों से भी
आसानी से गुजर जाती हैं जिससे शरीर के प्रत्येक हिस्से तक ऑक्सीजन आसानी से
पहुंचता है| सिकल सेल सामान्य रक्त
कोशिकाओं की तुलना में कम लचीली होती है क्योंकि उसका रूप हंसिया जैसा हो जाता है
| असामान्य लाल रक्त कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी
होती हैं तथा विभिन्न अंगों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं अवरुद्ध रक्त
प्रवाह के कारण तेज दर्द होता है और अंगो को क्षति पहुँचाता है | वैज्ञानिक
अनुसंधान में पाया गया है कि सिकल सेल जीन मलेरिया के प्रति आंशिक सुरक्षा प्रदान
करता है और सामान्यता मलेरिया ग्रस्त क्षेत्रों में पाया जाता है |
परिभाषा ( Definition ) -
दिव्यांगजन अधिकर अधिनियम २०१६ के अनुसार – ‘’ सिककल कोशिका
रोग’’ होमोलेतिक विक्रति अभि प्रेत है जो
रकत कि अत्यंत कमी, पीडादायक घटनाओं और जो सहबद्ध टिशुओं और
अंगों को नुकसान से विभिन्न जटिलताओं में परिलक्षित होता है ; “हेमोलेटक” लाल रक्त
कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली के नुकसान को निर्दिष्ट करता है जिसका परिणाम
हिमोग्लोबिन का निकलना होता है |
सिक्कल
सेल के कारण ( Cause of sickle cell ) -
सिक्क्ल सेल कोई संक्रामक बीमारी नहीं है यानी सर्दी –जुकाम
या किसी और इन्फेक्शन की तरह आप किसी ओर व्यक्ति को ट्रांसफर कर सकते और
न ही किसी और व्यक्ति से आप को यह बीमारी हो सकती है | यह एक आनुवांशिक
बीमारी है जब किसी बच्चे को अपने माता-पिता दोनों से सिकल सेल के जीन मिलते है तो
उस बच्चे को सिकल सेल बीमारी हो जाती है अगर किसी बच्चे को माता-पिता में से किसी
एक से यह सिकल सेल जिन्स मिलता है तो उस व्यक्ति को सिक्क्ल सेल बीमारी नही बल्कि
सिकल सेल ट्रेट की समस्या होती है सिकल सेल ट्रेट वाले व्यक्ति को बीमारी नहीं
होती लेकिन वह इस बीमारी का वाहक बन जाता है यानि वे अपने बच्चों को सिकल सेल जीन
ट्रांसफर कर सकते है
सिक्कल सेल की पहचान ( Indication of sickle cell ) -
·
शारीरिक विकास अवरुद्ध ,वजन और ऊंचाई सामान्य से कम
·
पीली त्वचा,रंगहीन नाख़ून
·
आँखों में पीलापन
·
सामान्य से अधिक थकावट
·
बार बार पेशाब जाना ,मूत्र का गाढ़ापन
·
हड्डीयों और पसलियों में दर्द
·
चिडचिडापन हाथ और पैरों में सुजन
·
सतत हल्का बुखार एवं दीर्धकालीन बुखार का रहना
·
बार बार वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण
·
बांझपन
·
चक्कर आना या सिर घूमना
·
परामर्श ( Counseling ) -
पानी अधिक मात्रा में पियें
अधिक मात्रा में फाइबर एवं रेशेदार
आहार लें |
अधिक प्रोटीन युक्त आहार लें
अत्यधिक तापमान से बचें
संक्रमण से बचें
नियमित रूप से खेल खेलें