हीमोफिलिया (Hemophilia) -
हीमोफिलिया आनुवांशिक रोग है इसे ब्रिटिश रॉयल डिजीज(शाही
रोग) के नाम से भी जाना जाता है जिसमें
शरीर के बाहर बहने वाला रक्त जमता नहीं है | या रक्त का बहना जल्दी से बंद नहीं
होता | इस रोग में रोगी के शारीर के किसी
भाग में जरा सी चोट लग जाने पर बहुत अधिक मात्रा में खून निकलना आरंभ हो जाता है |
अगर समय पर उपचार नहीं मिला तो रोगी की मृत्यु भी हो सकती है | इस के प्रति
जागरूकता फ़ैलाने के लिए १९८९ में विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाने की शुरुआत की गई ,
प्रत्येक वर्ष वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हेमोफीलिया (WFH) के संस्थापक फैंक कैनेबल के जन्मदिन १७ अप्रेल के
दिन विश्व हेमोफीलिया दिवस मनाया जाता है |
परिभाषा (Definition) दिव्यांगजन अधिकर अधिनियम २०१६ के अनुसार –
“हीमोफिलिया” से एक आनुवंशकीय रोग
अभिप्रेत है जो प्राय : पुरूषों को ही प्रभावित करता है किन्तु
इसे महिला द्वारा अपने नर बालकों को संचारित किया जाता है , इसकी विशेषता
रक्त के थक्का ज़मने की साधारण क्षमता का नुकसान होना है जिससे छोटे से घाव का परिणाम भी घातक रक्तस्राव
हो सकता है ;
कारण ( Cause ) -
यह बीमारी रक्त में
थ्राम्बोप्लास्टिन ( THROMBOPLASTIN) नामक
पदार्थ की कमी से होता है थ्राम्बोप्लास्टिन में खून को शीघ्र थक्का कर देने की क्षमता होती है | अर्थात एक रक्त
प्रोटीन की कमी होती है जिसे क्लाटिंग फैक्टर कहा जाता है | हीमोफीलिया रोग महिला
की अपेक्षा पुरुषों में अधिक पाया जाता है , इस रोग की वाहक महिला होती है , हीमोफीलिया दो प्रकार का होता है फैक्टर 8 की कमी हो तो हीमोफीलिया ‘ ए’ तथा
फैक्टर 9 की कमी को हीमोफीलिया ‘ बी ‘ कहा जाता है |
लक्षण ( Symptoms ) -
1-
शरीर में नीले –नीले निशान का बनना
2- नाक से खून
3- आंख के अन्दर खून का निकलना
,
4- जोड़ों में सूजन आना (विशेषकर
घुटनों ,एड़ी ,कोहनी आदि बार बार सुजन
5- चोट लगने पर रक्तश्राव जल्दी नहीं रूकना
6 – मसूड़ों से देर तक रक्तस्राव
का होना आदि
उपचार ( Treatment ) - सबसे पहले ब्लड टेस्ट
से हीमोफीलिया की जाँच करानी चाहिए
इसके पश्चात् निम्न तरीकों से इसका इलाज
किया जाता है |
1- थेरेपी:-
हीमोफीलिया का इलाज उसकी गंभीरता
पर निर्भर करता है | रिप्लेसमेंट थेरेपी के माध्यम से उपचार किया जाता है जिसमें
अधिक गंभीर स्थिति में हीमोफीलिया से जुड़े क्लोटिंग फैक्टर को बदला जाता है |
क्लोटिंग फैक्टर को नसों में नली डाल कर बदला जाता है |
2- डीडीएवीपी :- यह एक टीका है जिसे हल्के
हीमोफीलिया के लक्षण वाले मरीज को लगाया जाता है
जो शरीर में ज्यादा क्लोटिंग फैक्टर बनाने का काम करता है टीका नसों के भीतर लगाया जाता है या नाक में स्प्रे की मदद से लगाया जाता है |
3- एंटी फिब्रिनोलिटिक्स –
इस दवा की मदद से ब्लड क्लोट्स को
टूटने से रोका जाता है |
4- फैब्रिन सीलेंट-
इस दवा को सीधे चोट पर लगाई जाती
है ,जिससे घाव जल्दी भर जाए |
5- टीकाकरण
हीमोफीलिया रोग पीड़ित व्यक्ति को
हेपेटाइटिस ‘ए’ और हेपेटाइटिस ‘बी ‘ के खिलाफ टीका जरुर लगवाना चाहिए |
थेलेसीमिया (Thalassemia) - यह माता –पिता से अनुवांशिक तौर पर
मिलने वाला रक्त जनित रोग है| इस रोग से ग्रसित बालकों के शरीर में हीमोग्लोबिन निर्माण प्रक्रिया में
खराबी हो जाती है |जिसके कारण रक्त क्षीणता के लक्षण प्रकट होने लगते है | इसमें
रोगी बालक के शरीर में रक्त की भारी कमी
होने लगती है | जिस के कारण हिमोग्लोविन नहीं बन पाता है जिसके कारण बार बार रक्त चढाना पड़ता है | इस रोग में लाल रक्त कण (RBC)नहीं
बन पाते है और जो थोड़े बनते है वो अल्प काल तक रहते है |
परिभाषा ( Definition) -
दिव्यांगजन अधिकर अधिनियम २०१६ के
अनुसार –‘थेलेसीमिया’ से वंशानुगत विकृतीयों का एक समूह अभिप्रेत हैं जिसकी
विशेषता हिमोग्लोबिन की कमी या अभाव है ;
थेलेसीमिया के प्रकार (Type of Thalassemia) - ऐसे तो थेलेसीमिया के कई प्रकार
होते है पर मुख्यत: दो प्रकार है |
थेलेसीमिया माइन र :-
यह बीमारी उन बच्चों को होती है ,
जिन्हें प्रभाबित जीन्स माता अथवा पिता द्वारा प्राप्त होता है इस प्रकार से पीड़ित
थेलेसीमिया के रोगियों में अक्सर कोई लक्षण नजर नहीं आता हैं | यह रोगी थेलेसीमिया
वाहक होते है |
थेलेसीमिया
मेजर :-
यह बीमारी उन बालकों
को होती है जिनके माता –पिता दोनों के
जिन्स में कमी / गड़बड़ी होती है | यदि माता –पिता दोनों थेलेसीमिया माइनर हो तो
होने वाले बच्चें को थेलेसीमिया मेजर होने का खतरा अधिक रहता है |
हैड्रोप
फीटस :-
यह एक बेहद खतरनाक
थेलेसीमिया का प्रकार है जिसमें गर्भ के अंदर ही बालक की मृत्यु हो जाती है या
पैदा होने के कुछ समय बाद ही बच्चा मर जाता है |
लक्षण ( Symptoms ) -
थेलेसीमिया माइन र के अधिकतर मामलों में
कोई लक्षण नजर नहीं आता है | कुछ रोगियों को खून की कमी या एनीमिया हो सकता हैं | मेजर
थेलेसीमिया के लक्षण 3 माह बाद नजर आने लगते है | इस रोग में बालकों की जीभ पीली
पड़ जाती है जिससे पीलिया का भ्रम हो जाता है बच्चों का विकास रुक जाता है त्तथा
उम्र छोटी नजर आती है| सूखता चेहरा ,वजन न बढ़ना ,हमेशा बीमार नजर आना ,साँस लेने
में समस्या तथा बच्चों के जबड़ो व् गालों में असामान्यता आ जाती है |
उपचार/उपाय ( Treatment ) -
रक्त चढ़ना
थेलेसीमियाका उपचार
करने के लिए नियमित रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है| कुछ रोगियों को 10 से 15 दिन में रक्त चढ़ाना पड़ता है उम्र के साथ साथ
रक्त की आवश्यकता भी बड़े लगती है | अत: रक्त दान करना चाहिए जिससे इन रोगियों को
इलाज में सहायता मिल सके |
बोन
मेरो ट्रांसप्लांट:-
बोन मेरो ट्रांसप्लांट और स्टेम सैल का उपयोग कर बच्चों में इस रोग को रोकने
पर पर शोध हो रहा है|
खेलासोन
थेरेपी :-
बार बार रक्त चढ़ाने से
और लौह तत्व की गोली लेने से रोगी के रक्त में लौह तत्व की मात्रा अधिक हो जाती है लीवर ,स्पीलिन , तथा ह्रदय में
जरूरत से अधिक लौह तत्व जमा होने से ये अंग सामान्य कार्य करना बंद कर देते है
|रक्त में जमे इस अधिक पदार्थ को निकालने के लिए इंजेक्शन और दवा दोनों तरह के
इलाज उपलब्ध है |
जागरूकता
:-
आज समाज में
थेलेसीमिया को लेकर अज्ञानता हैं हमें थेलेसीमिया से पीड़ित लोगों में इस रोग
संबंधी जागरूकता फैलानी चाहिए ताकि इस रोग के वाहक इस रोग को और अधिक ण फैला सके |
गर्भावस्था
:-
अगर माता –पिता थेलेसीमियासे ग्रसित है तो गर्भावस्था के समय
प्रथम ३से४ माह के भीतर परिक्षण द्वारा
होने वाले बच्चे को थेलेसीमिया तो नहीं है इसका परिक्षण करना चाहिए |
शादी:-
थेलेसीमिया से बचने
के लिए शादी से पहले लड़के और लड़की की स्वास्थ्य कुंडली मिलानी चाहिए |जिससे पता
चले सके की उनका स्वास्थ एक दुसरे के अनुकूल है या नहीं | स्वास्थ्य कुंडली में थेलेसीमिया , एड्स ,हेपेटा इटिस बी
और सी ,आरएच फैक्टर इत्यादि की जाँच कराना चहिए|
सिक्क्ल
सैल ( Sickle cell )
-
सिकल सेल कई बीमारियों का एक समूह है जो खून में मौजूद हिमोग्लोबिन को
प्रभावित करता है | हिमोग्लोबिन शरीर की सभी कोशिकओं तक आक्सीजन पहुँचाने का काम
करता है | यह एक वंशानुगत बीमारी है जो बच्चों को अपने माता –पिता से मिलती है |
इसमें हिमोग्लोविन के असामान्य अणु जिन्हें हिमोग्लोबिन एस कहते हैं वे लाल रक्त
कोशिकाओं का रूप बिगड़ देते है | जिससे वह सिकल या हंसिया (अर्धचन्द्राकार )
आकृती का हो जाता है | लाल रक्त कोशिकाएं
जो स्वस्थ होती हैं उनका शेफ गोलाकार होता है जो छोटी छोटी रक्त धमनियों से भी
आसानी से गुजर जाती हैं जिससे शरीर के प्रत्येक हिस्से तक ऑक्सीजन आसानी से
पहुंचता है| सिकल सेल सामान्य रक्त
कोशिकाओं की तुलना में कम लचीली होती है क्योंकि उसका रूप हंसिया जैसा हो जाता है
| असामान्य लाल रक्त कोशिकाएं कठोर और चिपचिपी
होती हैं तथा विभिन्न अंगों में रक्त प्रवाह को अवरुद्ध करती हैं अवरुद्ध रक्त
प्रवाह के कारण तेज दर्द होता है और अंगो को क्षति पहुँचाता है | वैज्ञानिक
अनुसंधान में पाया गया है कि सिकल सेल जीन मलेरिया के प्रति आंशिक सुरक्षा प्रदान
करता है और सामान्यता मलेरिया ग्रस्त क्षेत्रों में पाया जाता है |
परिभाषा ( Definition ) -
दिव्यांगजन अधिकर अधिनियम २०१६ के अनुसार – ‘’ सिककल कोशिका
रोग’’ होमोलेतिक विक्रति अभि प्रेत है जो
रकत कि अत्यंत कमी, पीडादायक घटनाओं और जो सहबद्ध टिशुओं और
अंगों को नुकसान से विभिन्न जटिलताओं में परिलक्षित होता है ; “हेमोलेटक” लाल रक्त
कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली के नुकसान को निर्दिष्ट करता है जिसका परिणाम
हिमोग्लोबिन का निकलना होता है |
सिक्कल
सेल के कारण ( Cause of sickle cell ) -
सिक्क्ल सेल कोई संक्रामक बीमारी नहीं है यानी सर्दी –जुकाम
या किसी और इन्फेक्शन की तरह आप किसी ओर व्यक्ति को ट्रांसफर कर सकते और
न ही किसी और व्यक्ति से आप को यह बीमारी हो सकती है | यह एक आनुवांशिक
बीमारी है जब किसी बच्चे को अपने माता-पिता दोनों से सिकल सेल के जीन मिलते है तो
उस बच्चे को सिकल सेल बीमारी हो जाती है अगर किसी बच्चे को माता-पिता में से किसी
एक से यह सिकल सेल जिन्स मिलता है तो उस व्यक्ति को सिक्क्ल सेल बीमारी नही बल्कि
सिकल सेल ट्रेट की समस्या होती है सिकल सेल ट्रेट वाले व्यक्ति को बीमारी नहीं
होती लेकिन वह इस बीमारी का वाहक बन जाता है यानि वे अपने बच्चों को सिकल सेल जीन
ट्रांसफर कर सकते है
सिक्कल सेल की पहचान ( Indication of sickle cell ) -
·
शारीरिक विकास अवरुद्ध ,वजन और ऊंचाई सामान्य से कम
·
पीली त्वचा,रंगहीन नाख़ून
·
आँखों में पीलापन
·
सामान्य से अधिक थकावट
·
बार बार पेशाब जाना ,मूत्र का गाढ़ापन
·
हड्डीयों और पसलियों में दर्द
·
चिडचिडापन हाथ और पैरों में सुजन
·
सतत हल्का बुखार एवं दीर्धकालीन बुखार का रहना
·
बार बार वायरल और बैक्टीरियल संक्रमण
·
बांझपन
·
चक्कर आना या सिर घूमना
·
परामर्श ( Counseling ) -
पानी अधिक मात्रा में पियें
अधिक मात्रा में फाइबर एवं रेशेदार
आहार लें |
अधिक प्रोटीन युक्त आहार लें
अत्यधिक तापमान से बचें
संक्रमण से बचें
नियमित रूप से खेल खेलें
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